परिचय :-
भारत, एक विविध और जीवंत राष्ट्र, सदियों से विकसित होती आई एक जटिल मौद्रिक प्रणाली का धनी है। प्राचीन वस्तु-विनिमय प्रणाली से लेकर आधुनिक डिजिटल युग तक, भारत के मौद्रिक परिदृश्य में उल्लेखनीय परिवर्तन हुए हैं। आइए इमोजी की मदद से भारत की मौद्रिक प्रणाली की इस रोचक दुनिया में झाँकते हैं।
ऐतिहासिक विकास :-
- प्राचीन वस्तु-विनिमय प्रणाली: प्राचीन भारत में लोग सीधे वस्तुओं और सेवाओं का आदान-प्रदान करते थे, जैसे अनाज के बदले औज़ार ।
- कौड़ी का प्रयोग: कौड़ी भारत की प्रारंभिक मुद्राओं में से एक थी। ये हल्की, टिकाऊ और व्यापक रूप से स्वीकार्य थीं।
- धातु मुद्रा: समय के साथ पंच-चिह्नित सिक्के और गुप्तकालीन सिक्के प्रचलन में आए ।
- मध्यकालीन युग: मुग़ल जैसे राजवंशों ने अपनी मुद्राएँ जारी कीं, जैसे अकबर का चाँदी का सिक्का ‘रुपैया’ ।
- ब्रिटिश राज: ब्रिटिश शासन के दौरान भारत की मौद्रिक प्रणाली में बड़ा बदलाव हुआ। उन्होंने रुपये को मानक मुद्रा घोषित किया और ‘आना’ व ‘पैसा’ जैसी इकाइयाँ शुरू कीं।
आधुनिक मौद्रिक प्रणाली :-
आज भारत की मौद्रिक प्रणाली पारंपरिक और आधुनिक तत्वों का मिश्रण है।
- 1. रुपया आधिकारिक मुद्रा के रूप में :-
- भारतीय रुपया (₹) भारत की आधिकारिक मुद्रा है, जिसे भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) जारी करता है।
- RBI देश की मौद्रिक और वित्तीय प्रणाली को नियंत्रित करने वाली केंद्रीय बैंक है।
- 2. कागज़ी मुद्रा और सिक्के :-
- भारत में ₹10, ₹50, ₹100, ₹500 और ₹2000 के नोट प्रचलन में हैं।
- सिक्के ₹1, ₹2, ₹5 और ₹10 के मूल्य में उपलब्ध हैं ।
- 3. डिजिटल लेन-देन :-
- डिजिटलीकरण के साथ डिजिटल लेन-देन को व्यापक स्वीकृति मिली।
- पेटीएम, गूगल पे और फोनपे जैसे मोबाइल वॉलेट लोकप्रिय हैं।
- 4. बैंकिंग प्रणाली :-
- भारत में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बैंकों का विशाल नेटवर्क है।
- उदाहरण: भारतीय स्टेट बैंक (SBI) , आईसीआईसीआई बैंक , एचडीएफसी बैंक ।
- भारत में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बैंकों का विशाल नेटवर्क है।
- 5. विदेशी मुद्रा बाज़ार :-
- अंतरराष्ट्रीय व्यापार में विनिमय दर तय करने में विदेशी मुद्रा बाज़ार अहम भूमिका निभाता है।
- RBI रुपये के मूल्य को स्थिर रखने के लिए हस्तक्षेप करता है।
मुद्रा (Money):-
मुद्रा किसी भी अर्थव्यवस्था की जीवनरेखा होती है। यह विनिमय का माध्यम, मूल्यांकन की इकाई और मूल्य-संग्रहण का साधन है। भारत की मौद्रिक प्रणाली में मुद्रा आर्थिक लेन-देन को सुगम बनाती है और वित्तीय परिदृश्य को आकार देती है।
- 1. मुद्रा की भूमिका :-
- विनिमय का माध्यम: वस्तुओं और सेवाओं के लेन-देन को संभव बनाता है ।
- मूल्यांकन की इकाई: मूल्य और कीमत तय करने का मानक ।
- मूल्य-संग्रहण: संपत्ति को समय के साथ सुरक्षित रखने का साधन। लोग बैंक या निवेश के माध्यम से इसे सुरक्षित रखते हैं।
- 2. मुद्रा के रूप :-
- भौतिक मुद्रा: नोट और सिक्के, जिन्हें RBI जारी करता है ।
- डिजिटल मुद्रा: बैंक जमा, डिजिटल वॉलेट , ऑनलाइन बैंकिंग ।
- क्रिप्टोकरेंसी: बिटकॉइन और एथेरियम जैसे विकल्प, अभी भारत में व्यापक रूप से मान्य नहीं ।
- 3. मुद्रा की इकाइयाँ :-
- नोट: ₹10, ₹50, ₹100, ₹500, ₹2000 ।
- सिक्के: ₹1, ₹2, ₹5, ₹10 ।
- मूल्यवर्ग का चयन लेन-देन की सुविधा और मुद्रास्फीति नियंत्रण में मदद करता है।
- 4. मौद्रिक नीति :-
- RBI अर्थव्यवस्था में मुद्रा आपूर्ति को नियंत्रित करता है ।
- प्रमुख साधन: रेपो रेट, नकद आरक्षित अनुपात (CRR), वैधानिक तरलता अनुपात (SLR) ।
- 5. वित्तीय समावेशन :-
- प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY) जैसे कार्यक्रमों के ज़रिये बैंकिंग सेवाएँ वंचितों तक पहुँचाना ।
- गरीबी कम करने और आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करना।
- 6. डिजिटल भुगतान क्रांति:-
- यूपीआई, मोबाइल वॉलेट और ऑनलाइन बैंकिंग ने नकद रहित लेन-देन को बढ़ावा दिया ।
- इसने भौतिक मुद्रा पर निर्भरता कम की ।
- 7. चुनौतियाँ और भविष्य :-
- चुनौतियाँ: वित्तीय साक्षरता, साइबर सुरक्षा, डिजिटल विभाजन ।
- भविष्य: नवाचार, वित्तीय समावेशन, और विकास व मूल्य स्थिरता के बीच संतुलन ।
भारत में मुद्रा आपूर्ति : सिद्धांत, दृष्टिकोण और गतिशीलता :-
परिचय:-
मुद्रा आपूर्ति किसी भी अर्थव्यवस्था का मूल आधार है, जो आर्थिक गतिविधि को गति देती है। विविध और तीव्र गति से बढ़ती भारतीय अर्थव्यवस्था में इसकी समझ अत्यंत आवश्यक है।
मुद्रा आपूर्ति का मापन :-
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) “मनी मल्टिप्लायर एप्रोच” अपनाता है और इसे विभिन्न श्रेणियों में बाँटता है—
- 1. M0 (रिज़र्व मनी): जनता के पास मौजूद मुद्रा + बैंकों का RBI में रखा नकद।
- 2. M1 (संकीर्ण मुद्रा): M0 + माँग जमा (चालू खाते)।
- 3. M2 (अर्ध मुद्रा): M1 + बचत जमा, सावधि जमा, प्रमाणपत्र जमा।
- 4. M3 (विस्तृत मुद्रा): M1 + M2 + डाकघर बचत जमा।
मुद्रा आपूर्ति से जुड़े सिद्धांत और दृष्टिकोण :-
- 1. मात्रा सिद्धांत (Quantity Theory of Money): MV = PQ समीकरण के अनुसार मुद्रा आपूर्ति (M) बढ़ने पर यदि उत्पादन (Q) की तुलना में अधिक हो, तो मुद्रास्फीति होती है।
- 2. मौद्रिक नीति: RBI रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट, CRR जैसे साधनों से मुद्रा आपूर्ति नियंत्रित करता है।
- 3. बैंकों द्वारा ऋण सृजन: वाणिज्यिक बैंक अपने पास जमा धन का एक हिस्सा उधार देकर नया धन सृजित करते हैं।
- 4. वित्तीय समावेशन: अधिक लोग बैंकिंग प्रणाली से जुड़कर मुद्रा आपूर्ति बढ़ाते हैं।
- 5. डिजिटलीकरण: डिजिटल लेन-देन ने मुद्रा के प्रवाह को तेज किया है, लेकिन इसके मापन पर नए प्रश्न खड़े किए हैं।
- 6. वैश्विक कारक: विदेशी मुद्रा भंडार, व्यापार संतुलन और पूँजी प्रवाह भारत की मुद्रा आपूर्ति को प्रभावित करते हैं।
भारत में मुद्रा आपूर्ति की गतिशीलता :-
- 1. मुद्रास्फीति नियंत्रण: RBI का मुख्य लक्ष्य मुद्रास्फीति को तय सीमा में रखना है।
- 2. आर्थिक विकास: उचित मुद्रा आपूर्ति से व्यवसाय और व्यक्तियों को पर्याप्त ऋण मिलता है, जो विकास में मदद करता है।
- 3. बैंकिंग क्षेत्र का स्वास्थ्य: स्वस्थ बैंकिंग प्रणाली मुद्रा प्रवाह को स्थिर रखती है।
- 4. राजकोषीय नीति: सरकारी खर्च और बजट घाटा भी मुद्रा आपूर्ति को प्रभावित करते हैं।
- 5. प्रौद्योगिकी का प्रभाव: डिजिटल भुगतान ने मुद्रा की गति (Velocity of Money) को बदला है।
- 6. बाहरी कारक: प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI), विदेशी मुद्रा भंडार और वैश्विक आर्थिक हालात से भी मुद्रा आपूर्ति प्रभावित होती है।
चुनौतियाँ और नीतिगत विचार :-
भारत जैसी तीव्र गति से विकसित होती अर्थव्यवस्था में मुद्रा आपूर्ति का प्रबंधन कई चुनौतियों से भरा होता है और इसके लिए सावधानीपूर्वक नीतिगत विचार आवश्यक हैं:
- 1. मुद्रास्फीति नियंत्रण:-
- आर्थिक विकास की आवश्यकता और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने की अनिवार्यता के बीच संतुलन बनाए रखना भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के लिए एक नाज़ुक कार्य है। मुद्रा आपूर्ति में तीव्र वृद्धि माँग को प्रोत्साहित कर सकती है, लेकिन इसके साथ-साथ कीमतों में वृद्धि का कारण भी बन सकती है।
- 2. वित्तीय समावेशन:-

- 3.राजकोषीय उत्तरदायित्व (Fiscal Responsibility):-
- राजकोषीय और मौद्रिक नीतियों का समन्वय व्यापक आर्थिक स्थिरता बनाए रखने के लिए आवश्यक है। सरकारी उधारी को सावधानीपूर्वक प्रबंधित किया जाना चाहिए ताकि मुद्रा आपूर्ति पर अत्यधिक दबाव न पड़े।
- 4.प्रौद्योगिकीय प्रगति (Technological Advancements):-
- जैसे-जैसे भारत डिजिटल भुगतान और फिनटेक को अपनाता है, नियामक ढाँचे को नवाचारों की गति के साथ चलना होगा ताकि वित्तीय प्रणाली की अखंडता और स्थिरता सुनिश्चित की जा सके।
- 5.बाहरी झटके (External Shocks):-
- भारत वैश्विक आर्थिक उतार-चढ़ाव से अछूता नहीं है। नीति-निर्माताओं को सतर्क रहना होगा और ऐसे बाहरी झटकों से निपटने के लिए तैयार रहना होगा, जो देश की मुद्रा आपूर्ति को प्रभावित कर सकते हैं।
भारत में मुद्रा आपूर्ति एक गतिशील और जटिल पहलू है। इसमें निहित सिद्धांतों, दृष्टिकोणों और गतिशीलताओं को समझना नीति-निर्माताओं, अर्थशास्त्रियों और निवेशकों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। जैसे-जैसे भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में उभर रहा है, मुद्रा आपूर्ति का प्रभावी प्रबंधन स्थिरता बनाए रखने, विकास को प्रोत्साहित करने और नागरिकों के जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए अनिवार्य होगा।
मौद्रिक नीति :-
भारत की मौद्रिक नीति भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा बनाई और लागू की जाती है। इसका उद्देश्य मूल्य स्थिरता बनाए रखना और आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है। मौद्रिक नीति के प्रमुख घटक इस प्रकार हैं:-
- रेपो दर (Repo Rate):-
- यह वह ब्याज दर है जिस पर RBI वाणिज्यिक बैंकों को ऋण देता है। उच्च रेपो दर से ऋण लेना महँगा हो जाता है (उधारी हतोत्साहित होती है), जबकि कम रेपो दर से ऋण लेना आसान हो जाता है (उधारी प्रोत्साहित होती है) ।
- सीआरआर (CRR – Cash Reserve Ratio):-
- वाणिज्यिक बैंकों को अपनी कुल जमा राशि का एक निश्चित प्रतिशत नकद भंडार के रूप में RBI के पास रखना अनिवार्य होता है। सीआरआर में परिवर्तन से मुद्रा आपूर्ति प्रभावित होती है ।
- एसएलआर (SLR – Statutory Liquidity Ratio):-
- बैंकों को अपनी जमा राशि का एक निश्चित प्रतिशत सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश करना अनिवार्य है। यह बैंकिंग प्रणाली में तरलता (Liquidity) को नियंत्रित करने में मदद करता है ।
मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण :-
- भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) का उद्देश्य मुद्रास्फीति को एक निश्चित दायरे में रखना है। मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना रुपये की क्रय-शक्ति बनाए रखने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
खुला बाज़ार परिचालन (Open Market Operations – OMO) :-
RBI बैंकिंग प्रणाली में तरलता प्रबंधन के लिए खुले बाज़ार में सरकारी प्रतिभूतियों की ख़रीद और बिक्री करता है।
- विमुद्रीकरण :-
- नवंबर 2016 में भारत ने एक ऐतिहासिक घटना का अनुभव किया – विमुद्रीकरण। यह काले धन, जाली नोट और डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देने के लिए सरकार का साहसिक कदम था। 🇮🇳
- ₹500 और ₹1000 नोट: इन उच्च मूल्यवर्ग के नोटों को रातोंरात अमान्य कर दिया गया। लोगों को इन्हें बैंकों में जमा करने या बदलने की अवधि दी गई।
- डिजिटल भुगतान को बढ़ावा: विमुद्रीकरण ने यूपीआई और ई-वॉलेट जैसे डिजिटल भुगतान तरीकों को तेजी से अपनाने में मदद की ।
- अर्थव्यवस्था पर प्रभाव: इस कदम का अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों असर पड़ा। इससे जहाँ काले धन पर चोट हुई, वहीं अल्पकालिक आर्थिक व्यवधान भी उत्पन्न हुए।
- नवंबर 2016 में भारत ने एक ऐतिहासिक घटना का अनुभव किया – विमुद्रीकरण। यह काले धन, जाली नोट और डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देने के लिए सरकार का साहसिक कदम था। 🇮🇳
- वित्तीय समावेशन :-
- भारत की मौद्रिक प्रणाली में वित्तीय समावेशन एक प्रमुख लक्ष्य है। सरकार और RBI ने यह सुनिश्चित करने के लिए कई पहल की हैं कि बैंकिंग और वित्तीय सेवाएँ देश के हर कोने तक पहुँचें।
- जन धन योजना: प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY) का उद्देश्य बिना बैंक वाले लोगों को बैंकिंग सेवाएँ उपलब्ध कराना था ।
- आधार एकीकरण: बैंक खातों को आधार से जोड़ने से लोगों के लिए सरकारी सब्सिडी और लाभ लेना आसान हो गया है।
- प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT): सरकारी सब्सिडी अब सीधे लाभार्थियों के बैंक खातों में भेजी जाती है, जिससे रिसाव और भ्रष्टाचार कम हुआ है ।
- भारत की मौद्रिक प्रणाली में वित्तीय समावेशन एक प्रमुख लक्ष्य है। सरकार और RBI ने यह सुनिश्चित करने के लिए कई पहल की हैं कि बैंकिंग और वित्तीय सेवाएँ देश के हर कोने तक पहुँचें।
डिजिटल भुगतान क्रांति :-
पिछले कुछ वर्षों में भारत ने डिजिटल भुगतान के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव देखे हैं:
- यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI): यह एक गेम-चेंजर साबित हुआ है, जो स्मार्टफोन के माध्यम से तत्काल और सुरक्षित लेन-देन की सुविधा देता है ।
- भीम ऐप: भारत इंटरफेस फॉर मनी (BHIM) ऐप ने आसान और तेज़ डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा दिया ।
- QR कोड: दुकानों और रेस्तराँ में भुगतान के लिए QR कोड का व्यापक उपयोग हो रहा है ।
- डिजिटल वॉलेट: पेटीएम और फोनपे जैसे मोबाइल वॉलेट ऐप्स नकदरहित भुगतान को लोकप्रिय बना रहे हैं ।
- ऑनलाइन बैंकिंग: इंटरनेट बैंकिंग आम हो गई है, जिससे लोग अपने खाते प्रबंधित कर सकते हैं, बिल भर सकते हैं और ऑनलाइन निवेश कर सकते हैं ।
बैंकों और वित्तीय संस्थानों की भूमिका :-
भारत की मौद्रिक प्रणाली में बैंकों और वित्तीय संस्थानों की केंद्रीय भूमिका है:
- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक: एसबीआई और पंजाब नेशनल बैंक जैसे सरकारी बैंक बैंकिंग क्षेत्र की रीढ़ हैं ।
- निजी क्षेत्र के बैंक: एचडीएफसी और आईसीआईसीआई जैसे निजी बैंक प्रतिस्पर्धा और नवाचार लाते हैं ।
- ग़ैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ (NBFCs): ये ऋण और निवेश उत्पादों सहित अनेक वित्तीय सेवाएँ प्रदान करती हैं ।
- शेयर बाज़ार: भारत में दो प्रमुख शेयर बाज़ार हैं – नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) और बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE), जहाँ शेयर और प्रतिभूतियों का लेन-देन होता है ।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और विनिमय दर :-
भारत की मौद्रिक प्रणाली अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और विनिमय दरों से गहराई से जुड़ी है:
- विदेशी मुद्रा भंडार: रुपया वैश्विक बाज़ार में स्थिर रहे, इसके लिए भारत पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार रखता है ।
- द्विपक्षीय और बहुपक्षीय समझौते: भारत विभिन्न देशों और WTO जैसे संगठनों के साथ व्यापार समझौते करता है ।
- विनिमय दर में उतार-चढ़ाव: यह भारतीय निर्यात और आयात की प्रतिस्पर्धात्मकता तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं ।
चुनौतियाँ और भविष्य की दिशा :-
हालाँकि भारत की मौद्रिक प्रणाली ने उल्लेखनीय प्रगति की है, फिर भी कई चुनौतियाँ बनी हुई हैं:
- वित्तीय समावेशन: दूर-दराज़ क्षेत्रों में सभी तक बैंकिंग सेवाएँ पहुँचाना अभी भी चुनौती है ।
- डिजिटल खाई: यह सुनिश्चित करना ज़रूरी है कि हर कोई डिजिटल भुगतान के साधनों तक पहुँच सके ।
- साइबर सुरक्षा: डिजिटल लेन-देन बढ़ने के साथ साइबर ख़तरों में भी वृद्धि हुई है ।
- मुद्रास्फीति नियंत्रण: मूल्य स्थिरता बनाए रखना RBI के लिए निरंतर चुनौती है ।
निष्कर्ष :-
भारत की मौद्रिक प्रणाली परंपरा और आधुनिकता का गतिशील संगम है। मुद्रा के विभिन्न रूपों के समृद्ध इतिहास और हाल के वर्षों में डिजिटलकरण की तेज़ प्रगति के साथ भारत का मौद्रिक परिदृश्य निरंतर विकसित हो रहा है। सरकार और RBI के वित्तीय समावेशन के प्रयास तथा तकनीकी नवाचार मिलकर भारत की मौद्रिक प्रणाली का भविष्य गढ़ रहे हैं।